मृदुल स्वभाव मन चंचल सा हरियाली जग में छाए
प्रकृति प्रेम है दिखलाती जब भाव लीन सब हो जाएँ

नहीं करती है परेशान जब तक ना उसको ठुकराए
मानव है चाहत का प्याला उसकी प्यास ना बुझ पाए

नाश करता है नियम प्रकृति के खोज बीन में जुट जाए
ना हो पूरी मन इच्छा इसकी तो प्रकृति प्रेम को ठुकराए

लेता है सब कुछ प्रकृति से वो देता है इसको जहर सदा
नहीं करता है परवाह इसकी खुद की खुशियों में डूबे सदा

वो लड़ने को तत्पर रहता है अपने स्वार्थ को दिखलाए
पग पग पर लड़ता रहता है प्रकृति प्रकोप से ना घबराए

नहीं जानता क्या कुछ भी वो कोई नहीं क्यूँ झेल है पाता
प्रकृति की मार नहीं आसान एक बार में है कुछ नहीं जाता

खुश रहने पर रखती है ख्याल बिखेरती सबमें खुशहाली को
हो जाए जो कभी निराश वो दिखलाती गुस्सा सभी प्रजाति को

मृदुल स्वभाव मन चंचल सा हरियाली जग में छाए
प्रकृति प्रेम है दिखलाती जब भाव लीन सब हो जाएँ....

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